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Saturday, April 21, 2012

अवलोकितेश्वर मन्त्र

नमो रत्नत्रत्राय।
नमो आर्यज्ञान सागर भैरोचन।।
व्युहराजय तथागतय अर्हते सम्यक सम्बुद्धया।
नमो सर्व तथागतेव्यह, आर्हतव्यह, सम्यकसम्बुद्धेव्यह।
नमो आर्य अवोलकितेश्वरया, बोधिसत्वाय, महासत्वाय,महाकरूणिकाय।
त या थ  धारा धारा धिरि धिरि धुरू धुरू
इतिमे इहि चले चले  प्र चले प्र चले
कुशुमे कुशुमवरे इलि मिली चित्तिच्वाङल महामनुया स्वाहः




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