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Monday, April 16, 2012

प्रज्ञापरामिता ह्रदय सुत्र


नमोः सर्वज्ञाय!

गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा!*८

आर्यवलोकितेश्वरबोधिसत्वो गंम्भीरायां प्रज्ञापारमितायां चर्या
चरमाणो व्यवलोकयति स्म।
पंचस्कन्धः तांश्च स्वभावशून्यान पश्यति स्म।।

इह शारिपुत्र ,
रूपं शून्यता, शून्यतैब रूपम् ।
रूपान्न पृथक् शून्यता,
शून्यताया न पृथग् रूपम्।
यद्रूपं सा शून्यता,
या शून्यता तद्रूपम्।।

इह शारिपुत्र
सर्वधर्मोः शून्यतालक्षणा अनुत्पन्ना अनिरूद्या
अमला न विमला नोना न परिपुर्णाः।
न बिद्या नाविद्याया
नाविद्याक्षयो नाविद्यायाक्षयो
यावन्न जरामरणं,न जरामरणक्षयो
न दु.खसमुदयनिरोधमार्गा न ज्ञान न प्राप्तित्वम् ।।


बोधिसत्वस्य प्रज्ञापारमितामाश्रित्य विहरति चित्ताबरणः।
चित्तावरणनास्तित्वादत्रस्ता विपर्यासातिक्रान्तो निष्ठनिर्वाणः।
त्र्याध्वव्यवस्थिताः सर्वबुद्धाः प्रज्ञापारमितामाश्रित्या अनुत्तरां
सम्यक संबोधिमभिसंबुद्धा।।

तस्माज्ज्ञातव्यः प्रज्ञापारमितामहामन्त्रो महाविद्यामन्त्रो अनुत्तरमन्त्र
असमसममन्त्रः
सर्वदु.खप्रशमनः सत्यममिथ्यत्वात् प्रज्ञामारमितायामुक्तो मन्त्रः।
गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा।।


2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर सूत्र है यह , जितनी बार सुनता हूँ , मन कही को सा जाता है .. शेऐर करने के लिये धन्यवाद आशीष ...

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    1. बहुत बहुत सुक्रिया डा.साहेब टिप्पणीके लिएं......

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